Naubatkhane me Ibadat Class 10 MCQ Questions with Answers Class 10 Hindi |
NCERT Solutions for Naubatkhane me Ibadat Class 10 Hindi |
NCERT Summary for Naubatkhane me Ibadat Class 10 Hindi |
1. खाँ साहब की बचपन में नाना के साथ एवं शहनाई से जुड़ी यादों को बताइए।
Solution
चार वर्ष की उम्र में, खाँ साहब छिपकर नाना को शहनाई बजाते हुए सुनते थे। नाना के वहाँ से चले जाने के बाद, उन्होंने ढेरों छोटी-बड़ी शहनाइयों में से अपने नाना की शहनाई खोज निकाली। हर शहनाई को बजाते और फेंक देते। फिर यह सोचकर छोड़ देते कि ‘नाना मीठी वाली शहनाई कहीं और रखते हैं।
2. बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगलध्वनि का नायक क्यों कहा गया है?
Solution
बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगलध्वनि का नायक कहा जाता है क्योंकि उनकी शहनाई से हमेशा मधुर मंगलध्वनि निकलती थी। वे काशी के विश्वनाथ व बालाजी मन्दिर में कई मांगलिक उत्सवों पर शहनाई बजाते थे। इसके साथ ही उनसे बढ़कर और दूसरा सुरीला शहनाईवादक नहीं हुआ है।
3. खाँ साहब के जीवन में रसूलन और बतूलन बाई का महत्व समझाइए।
Solution
खाँ साहब अपने जीवन में रसूलन और बतूलन बाई नामक गायिका बहनों के संगीत को प्रथम प्रेरणा मानते थे। क्योंकि उनकी धुनों को सुनकर ही उनकी संगीत के प्रति रुचि बढ़ी।
4. बिस्मिल्ला खाँ को ईश्वर पर किस बात को लेकर यकीन था?
Solution
बिस्मिल्ला खाँ का विश्वास था कि ईश्वर एक दिन उन्हें सच्चा सुर अवश्य देंगे। सुनने वालों के आँखों में सच्चे मोती की तरह अनगढ़ आँसू बहेंगे क्योंकि उनके स्वर में वह तासीर होगी। यही कारण था कि वे अपने शहनाई वादन को विशिष्ट लयकारी बनाने का विश्वास रखते थे।
5. मुहर्रम में हज़ार वर्ष की परंपरा कैसे पुनर्जीवित हो जाती थी?
Solution
मुहर्रम के दिन शोक मनाया जाता है। इमाम हुसैन और उनके परिवार के सदस्यों की शहादत को सभी लोग याद करते हैं। लोगों की आँखें नम हो जाती हैं।
6. ‘काशी में बाबा विश्वनाथ और बिस्मिल्ला खाँ एक-दूसरे के पूरक हैं’-कथन का क्या आशय है?
Solution
धार्मिक और सांस्कृतिक आस्था की दृष्टि से काशी में बाबा विश्वनाथ का जो महत्त्व है, उसी तरह धार्मिक एकता, मजहबी आस्था एवं संगीत साधना के लिए बिस्मिल्ला खाँ का काशी से अटूट सम्बन्ध रहा है। वे इस विशेषता से एक-दूसरे के पूरक हैं।
7. मुहर्रम के त्योहार के समय बिस्मिल्ला खाँ क्या भूमिका निभाते थे?
Solution
खाँ साहब मुहर्रम की आठवीं तारीख को खड़े होकर शहनाई बजाते थे। इस दिन कोई राग नहीं बजता। वे रोते हुए नोहा बजाते हुए दाल मंडी से फातमान तक करीब आठ किलोमीटर पैदल चलते थे।
8. उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ की काशी को क्या देन है?
Solution
उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ ने काशी को हिन्दू-मुस्लिम एकता की मूल्यवान संस्कृति दी। मुसलमान होने पर भी वे गंगा को मैया मानते थे। बालाजी तथा बाबा विश्वनाथ के प्रति गहरी श्रद्धा व्यक्त करते हुए, काशी को जन्नत की तरह पवित्र माना। इस तरह की आस्था के कारण उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता बनाने में सहयोग किया।
9. खाँ साहब की अपनी शिष्या द्वारा टोके जाने पर क्या प्रतिक्रिया हुई?
Solution
शिष्या की बात सुनकर खाँ साहब मुसकरा पड़े और बड़े प्रेम से उससे बोले ‘पगली, मुझे भारत रत्न शहनाई पे मिला है लुंगी पर नहीं। इसलिए तुम मेरी लुंगी को न देखकर शहनाई के सुर देखा।’
10. कुलसुम की देसी घी वाली दुकान में बनी कचौड़ी को बिस्मिल्ला खाँ संगीतमय कचौड़ी क्यों कहते थे?
Solution
पक्का महाल की कुलसुम हलवाइन जब कलकलाते घी में कचौड़ी तलने डालती थी, तो उस समय ‘छन्न’ की आवाज आती थी। उस शब्द या आवाज में संगीत के सारे आरोह-अवरोह झलकते थे। इसी कारण बिस्मिल्ला खाँ को उसमें से आने वाली आवाज संगीतमय लगती थी और वे उसे संगीतमय कचौड़ी कहते थे।
11. उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ शहनाई वादन के संबंध में क्या सोचते रहे?
Solution
उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ ने अपने पूरे जीवन में शहनाई वादन के बारे में सोचा कि अभी उन्हें एक सच्चे सुर की तलाश है। अब परमात्मा उन्हें सुर का नया फल देगा, जिसे खाकर वे शानदार शहनाई बजाएंगे।
12. काशी में प्रतिवर्ष होने वाले संगीत – आयोजन की क्या विशेषता थी?
Solution
काशी में प्रतिवर्ष संगीत – आयोजन संकट मोचन मंदिर में होता है। यहाँ हनुमान जयंती पर पाँच दिनों का शास्त्रीय और उपशास्त्रीय गायन और वादन के कार्यक्रम होते हैं। शहनाईवादक बिस्मिल्ला खाँ इस कार्यक्रम में अवश्य रहते हैं।
13. बिस्मिल्ला खाँ काशी छोड़ना क्यों नहीं चाहते थे?
Solution
बिस्मिल्ला खाँ ने काशी और शहनाई को जन्नत समझते थे। काशी ही उनकी जन्म और कर्मभूमि थी। उनकी आस्था गंगा मैया, काशी विश्वनाथ और बाला जी मंदिर में थी। इसलिए वे काशी को छोड़ना नहीं चाहते थे।
14. मजहब के प्रति समर्पित बिस्मिल्ला खाँ काशी से बाहर होने पर बाबा विश्वनाथ के प्रति अपनी श्रद्धा किस प्रकार व्यक्त करते थे?
Solution
मजहब के प्रति समर्पित बिस्मिल्ला खाँ काशी से बाहर होने पर बाबा विश्वनाथ और बालाजी के मन्दिरों की ओर मुँह करके बैठते थे और शहनाई को कुछ क्षण के लिए उसी ओर घुमाकर बजाते थे। इस तरह, वे बाबा विश्वनाथ के प्रति अपनी आस्था और श्रद्धा को व्यक्त करते थे।
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