1. लेखक ने नवाब साहब के सामने की बर्थ पर बैठकर भी आँखें क्यों चुराई?
Solution
लेखक ने सोचा था कि सेंकंड क्लास का डिब्बा खाली होगा, लेकिन जब वे डिब्बे में घुसे तो देखा कि वहाँ पहले से ही एक सज्जन बैठे थे और खीरा खाना चाहते हैं, लेकिन लेखक के आने से उन्हें संकोच हो रहा था। यही सोचकर लेखक ने नवाब साहब के सामने की बर्थ पर बैठकर भी नज़रे चुराईं।
2. लेखक गाड़ी के किस डिब्बे में चढ़ गए और क्यों?
Solution
लेखक ने सेकंड क्लास का टिकट लिया क्योंकि उन्होंने सोचा कि डिब्बा पूरी तरह से खाली होगा। उसमें कोई यात्री नहीं होगा, और वे आराम से खिड़की के पास बैठकर प्राकृतिक दृश्य को देखते हुए नई कहानी सोचेंगे।
3. “हमने भी उनके सामने की बर्थ पर बैठकर आत्म-सम्मान में आँखें चुरा लीं। ” इस वाक्य में किस आत्म-सम्मान की बात कही गई है?
Solution
जब लेखक सेकंड क्लास डिब्बे में आया और नवाब साहब के सामने की सीट पर बैठा, नवाब साहब ने उनसे बात करने में कोई उत्साह नहीं दिखाया। तब लेखक को भी नवाब साहब से बोलना आत्म-सम्मान के विरुद्ध लगा। इस वाक्य में मेल-मिलाप न रखने वाले के साथ बोलना अपमान करना बताया गया है और इसे ही आत्म-सम्मान की बात कहा गया है।
4. लेखक के अनुसार नई कहानी का लेखक कौन है?
Solution
लेखक का कहना है कि नवाब जैसे लोग नई कहानी के लेखक हो सकते हैं क्योंकि वे घटना, पात्र और विचार के बिना कहानी लिखने की वकालत करते हैं। किंतु यह उतना ही असंभव है जितना कि नवाब का बिना खीरा खाए उसकी सुगंध से पेट भरना।
5. लेखक को नवाब साहब के किन हाव-भावों से महसूस हुआ कि वे उनसे बातचीत करने के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं हैं?
Solution
लेखक सेकण्ड क्लास के डिब्बे में सवार हुआ। उसमें नवाब साहब अकेले पालथी मारकर बैठे थे। लेखक को देखकर उनके चेहरे पर असंतोष का भाव छा गया, मानो वे उनके आने से खुश नहीं थे। फिर उन्होंने ऐसे मुँह फेरा, जैसे उन्हें लेखक से बातचीत करने में कोई उत्साह नहीं था।
6. खीरे की घटना से लेखक क्या सोचने पर विवश हो गया?
Solution
खीरे की घटना ने लेखक को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि जब खीरे की सुगंध और कल्पना ही मन को भर देती हैं और डकार देती हैं तो लेखक केवल विचार, घटना और पात्रों की इच्छा से ही एक ‘नई कहानी’ लिख सकता है।
7. नवाब साहब को लखनऊ स्टेशन पर खीरा बेचने वालों ने खीरों के साथ और क्या चीजें दी थीं? उस वस्तु की उपयोगिता पर प्रकाश डालिए।
Solution
लखनऊ स्टेशन पर खीरा बेचने वालों ने नवाब साहब को खीरों के अलावा जीरा मिला नमक और पिसी हुई लालमिर्च की पुड़िया भी दी थी। इन दोनों का उपयोग खीरा पर बुरकने और उसका पानी निकालकर उसे स्वादिष्ट बनाने और सुगन्धित स्वाद लेने में किया जाता है।
8. क्या आप नवाब साहब को लेखक की तुलना में अधिक शिष्ट और सामाजिक प्रवृत्ति का व्यक्ति मानते हैं? अपने विचार प्रकट कीजिए।
Solution
सामाजिक प्रवृत्ति और शिष्टता की दृष्टि से लेखक को अच्छा व्यक्ति माना जा सकता है, लेकिन गर्व और आत्म-सम्मान की दृष्टि से दोनों को समान मानना उचित है। जैसे, नवाब साहब ने पहले लेखक से बातचीत शुरू की, खीरा खाने का निमन्त्रण देकर संगति का उत्साह दिखाया। इसलिए नवाब साहब को लेखक से अधिक विनम्र व्यक्ति मानना उचित है।
9. लेखक ने खीरा खाने से क्यों मना कर दिया?
Solution
लेखक ने खीरा खाने से मना कर दिया था क्योंकि नवाब साहब ने डिब्बे में चढ़ते समय उनसे अरुचि व्यक्त की थी।दूसरा, आत्मसम्मान को बचाने के लिए उन्होंने खीरा खाने से मना कर दिया।
10. नवाब साहब को लखनऊ स्टेशन पर खीरा बेचने वालों ने खीरों के साथ और क्या चीजें दी थीं? उस वस्तु की उपयोगिता पर प्रकाश डालिए।
Solution
लखनऊ स्टेशन पर खीरा बेचने वालों ने नवाब साहब को खीरों के अलावा जीरा मिला नमक और पिसी हुई लालमिर्च की पुड़िया भी दी थी। इन दोनों का उपयोग खीरा पर बुरकने और उसका पानी निकालने में किया जाता है, जिससे वह स्वादिष्ट और सुगन्धित हो जाता है ।
11. नवाब साहब खीरे को बाहर फेंककर गर्व से क्यों भर उठे?
Solution
खीरे को बाहर फेंककर नवाब साहब गर्व से भर उठे क्योंकि इससे लेखक के सामने उनकी खानदानी रईसी दिखाई दे रही थी। उन्हें लगा उनका नवाबी रुतबा और बढ़ा गया है। खीरे की सुगंध और स्वाद की कल्पना मात्र से पेट भर जाने का भाव उन्हें आम आदमी की श्रेणी से अलग कर रहा था और उनकी उच्च जीवनशैली का संकेत दे रहा था।
12. नवाब साहब ने खीरे को खाने योग्य किस प्रकार बनाया?
Solution
पानी से धोकर, नवाब ने खीरों को तौलिये से पौंछा, फिर चाकू से खीरों के सिर काटकर उन्हें गोद कर झाग निकाला। फिर बहुत सावधानी से खीरों के फाँकों को करीने से तौलिये पर सजाकर, उन पर जीरा, नमक और मिर्च झिड़ककर खाने योग्य बनाया।
13. ‘लखनवी अंदाज़’ पाठ में निहित व्यंग्य को स्पष्ट करें।
Solution
लेखक ने लखनवी अंदाज़ में प्राचीन शाही परंपरा पर व्यंग्य किया है, जो झूठी शान से जीती है और वास्तविक स्थिति को छिपाने की कोशिश करती है। यह उनके जीवन को सतही बनाता है। जिन लोगों को लगता है कि व्यर्थ दिखावे में उनकी शान है, वे वास्तव में खुद को धोखा दे रहे हैं। यह पाठ व्यंग्य करता है जो बिना पात्र, घटना या कथन के कहानी लिखने की कोशिश करते हैं। जबकि इनके बिना कहानी अस्तित्वहीन होती है।
0 Comments